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भगवान चित्रगुप्त की जन्म की रोचक कथा

 

जैनेंद्र कुमार गुप्त

 मान्यताओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त कायस्थों के वशंज है उनकी मान्यताओं के अनुसार वे उनके प्रथम देवता है। लेकिन  क्या   आपको पता है।भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश है। मनुष्य की मृत्यु के पश्चात्  उन्हे  स्वर्ग मिले या नरक इसका निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ भगवान धम॔राज चित्रगुप्त जी के द्वारा लिया जाता है।

हिन्दु धर्म में भगवान श्री चित्रगुप्त का एक प्रमुख स्थान है। ये पाप पुण्य का लेखा जोखा करने वाले भगवान है

 चित्रगुप्त के जन्म की कथा काफी रोचक है। जब यमराज ने अपने सहयोगी की मांग की, तो ब्रह्मा ध्यान में चले गए। उनकी एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था। इसलिए ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।

 पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक सृष्टि की रक्षा करें। इसके बाद बह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष कलम-दवात लिए खड़ा है।

ब्रह्मा जी उसका परिचय पूछा तो वह बोला,' मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य हैं और मेरे लिये कोई काम है तो बताएं। ब्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिए 'कायस्थ' तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे।