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UTTAR PRADESH: रिहाई के बाद आज़म खां पर सियासी निगाहें: मायावती-तजीन मुलाकात की चर्चा ने बढ़ाई अटकलें, अखिलेश संग टिकट विवाद से रिश्तों में दरार

न्यूज डेस्क: उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय से सक्रिय समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और रामपुर के कद्दावर मुस्लिम चेहरा आज़म खां 23 महीने बाद सीतापुर जेल से रिहा हो गए हैं। उनकी रिहाई के बाद न सिर्फ सपा बल्कि पूरे प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में नई हलचल शुरू हो गई है। सबसे ज्यादा चर्चा उनके संभावित सियासी ठिकाने को लेकर हो रही है।


मायावती-तजीन फात्मा मुलाकात की खबर से अटकलों को हवा

आजम खां की रिहाई के साथ ही उनकी पत्नी डॉ. तजीन फात्मा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती की कथित मुलाकात की खबरें सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक सुर्खियां बटोर रही हैं। चर्चाओं के मुताबिक, दिल्ली में दोनों की भेंट हुई थी और बातचीत का मुख्य विषय खुद आज़म खां ही थे।
हालांकि, आज़म खां के करीबी इस खबर को महज़ अटकल बताते हुए खारिज कर रहे हैं। उनका कहना है कि डॉ. तजीन फात्मा कई महीनों से दिल्ली नहीं गईं, इसलिए मायावती से मुलाकात की खबरों में सच्चाई नहीं है।


अखिलेश यादव और आज़म खां के बीच खिंचाव

लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर आज़म खां और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के रिश्तों में तल्ख़ी आई थी।

  • आज़म खां ने अखिलेश को रामपुर से खुद चुनाव लड़ने की सलाह दी थी।
  • साथ ही मुरादाबाद सीट से बिजनौर की पूर्व विधायक रुचिवीरा का नाम आगे बढ़ाया था।
    लेकिन अखिलेश ने न सिर्फ रामपुर से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया बल्कि आज़म की पसंद को दरकिनार कर मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी को प्रत्याशी घोषित कर दिया।
    इसके बाद रामपुर के कुछ सपा नेताओं ने लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का एलान कर दिया था। यही घटना दोनों नेताओं के बीच तनाव का बड़ा कारण मानी जा रही है।

दलित-मुस्लिम गठजोड़ की चर्चाएं

सीतापुर जेल में आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने भी आज़म खां से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद दलित-मुस्लिम गठजोड़ की संभावनाओं पर राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई थीं। जानकारों का कहना है कि आज़म खां का अगला राजनीतिक कदम इसी समीकरण को देखते हुए तय हो सकता है।


सपा में ही रहने का दावा

सपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि आज़म खां पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं और उनका सियासी सफर समाजवादी पार्टी के बिना अधूरा है।
पूर्व सांसद डॉ. एस.टी. हसन ने साफ कहा कि “आज़म खां सपा के संस्थापक सदस्य रहे हैं, उनके किसी और पार्टी में जाने की चर्चाएं पूरी तरह से निराधार हैं। न तो उनकी पत्नी की किसी नेता से मुलाकात हुई है और न ही इस संबंध में कोई ठोस सबूत है।”
उन्होंने दावा किया कि आज़म खां सपा में ही रहेंगे।


सौ से ज़्यादा मुकदमों की लंबी सूची

आज़म खां पर अब तक लगभग 96 मुकदमे दर्ज हुए। इनमें से 12 मामलों में फैसला सुनाया जा चुका है—5 में सजा और 7 में बरी कर दिया गया।
सूत्रों के अनुसार:

  • 59 मामले सेशन कोर्ट में लंबित हैं।
  • 19 मामले मजिस्ट्रेट कोर्ट में विचाराधीन हैं।
    भाजपा सरकार के दौरान आज़म खां पर कई गंभीर मामले दर्ज किए गए थे। दो जन्म प्रमाण पत्र से जुड़े मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद वह 18 अक्तूबर 2023 को अपनी पत्नी डॉ. तजीन फात्मा और बेटे अब्दुल्ला आज़म के साथ जेल गए थे।




  • अखिलेश का प्रतिक्रिया देने से इंकार

जब मीडिया ने अखिलेश यादव से आज़म खां के संभावित बसपा रुख को लेकर सवाल किया तो उन्होंने सिर्फ मुस्कुरा कर टाल दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अखिलेश की यह प्रतिक्रिया मौन संदेश भी हो सकती है कि वह फिलहाल किसी भी तरह की सार्वजनिक बयानबाजी से बचना चाहते हैं।


सियासी भविष्य पर सबकी निगाह

आजम खां के अगले कदम को लेकर अभी कोई आधिकारिक बयान न तो बसपा प्रमुख मायावती की ओर से आया है और न ही तजीन फात्मा की ओर से।
फिर भी, उनकी रिहाई ने उत्तर प्रदेश की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या आज़म खां बसपा से नज़दीकी बढ़ाकर नया सियासी समीकरण गढ़ेंगे या सपा में रहकर अपनी पुरानी सियासी पारी को ही आगे बढ़ाएंगे।
आने वाले कुछ हफ्तों में उनका रुख न केवल रामपुर की बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है।